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Ma Gyan Patra : A Rare Disciple
Ma Gyan Patra, the founder and coordinator at Osho Sakshin Meditation Center in Tokyo, Japan left her body on December 28 in the serene hour of twilight, in Bhopal. She was a disciple immersed in Osho’s teachings and her essence lingers on in the whispers of her work dedicated to the Master. She and her husband, Swami Satya Tirth, were devoted to His work in India and Japan.
In 1989, they co-founded a meditation centre in Tokyo, Osho Sakshin (https://www.sakshin.com/index-E.html). It has been and continues to be an active and prominent Osho centre in Japan. Sakshin opened a publishing house in Japan and published many books of Osho in Japanese. Osho Times and Osho Darshan magazine were published and circulated in Japanese through their loving efforts.
In 1997, they purchased Osho’s birth house in Kuchwada, India, and turned it into Osho Tirth Centre. In the same year, she bought 11 acres of land near His house and built the Osho Tirth Centre for seekers. Since then the centre has been dedicated to spreading His vision and meditations. In 2004 she opened a book shop for making Osho’s books, pictures, and discourses available to His lovers.
Her gratitude for the Master was expressed in many ways. Ma Patra became unwell in early December and was hospitalized in Bhopal. Her departure has left behind much love and gratitude amongst her fellow seekers. With reverence, friends gathered at her funeral yesterday and a celebration will be held soon.
“Live so totally that when death comes to you, let it find you alive. Let it find you ready, enjoying, celebrating, with a smile on your face.” – Osho.
जागरूक भक्तों ने बचाया ओशो आश्रम
Written by रजनीश कपूर, वरिष्ठ पत्रकार
जब भी कभी कोई आध्यात्मिक गुरु या संगठन काफ़ी विख्यात हो जाता है तो उसमें विवाद भी पैदा होने लगते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ विश्व भर के प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु ओशो के संगठन के साथ। कुछ दिनों पहले ओशो रजनीश का पुणे स्थित आश्रम भी ऐसे ही कारणों के चलते सुर्ख़ियों में रहा। विवाद का कारण पुणे के ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसॉर्ट की ज़मीन में से 3 एकड़ जमीन को ओशो के ही कुछ अनुयायियों और पूर्व ट्र्स्टी द्वारा मिलकर बेचना था। इससे ओशो विद्रोही गुट की बेचैनी बढ़ गई, जिसने अपने “गुरु”की विरासत को खत्म करने के किसी भी कदम का कड़ा विरोध किया।मामला देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुँच गया और इस ग़ैर-क़ानूनी बिक्री पर रोक लगी।
देश भर में विभिन्न संप्रदायों और पंथों के आध्यात्मिक साधना केंद्रों की तरह पुणे का ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसॉर्ट भी ओशो के अनुयायियों के लिए एक तीर्थ के समान है। ओशो को मानने वाले यहाँ ध्यान-साधना करने आते हैं। परंतु बीते कुछ वर्षों से यह आश्रम विवादों में रहा है। ओशो के भक्तों के अनुसार ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन (ओआईएफ) पुणे के कोरेगांव पार्क में बने इस रिसॉर्ट की ज़मीन को एक औद्योगिक घराने को कौड़ियों के भाव में बेचने का निर्णय ले चुका था। उनका यह भी आरोप है कि ओआईएफ़ विदेशी ताकतों के हाथ में है और स्विटजरलैंड से संचालित हो रहा है। ग़ौरतलब है कि पुणे के आश्रम की ज़मीन की क़ीमत लगभग ₹1500 करोड़ है। इसमें से एक हिस्सा₹107 करोड़ में एक औद्योगिक घराने को बेचने का प्रयास किया जा रहा था। इस ‘गुप्त सौदे’ के बारे में जैसे ही ओशो के शिष्य योगेश ठक्कर को पता चला तो उन्होंने इस पर पुणे के चैरिटी कमिश्नर के पास आपत्ति दर्ज करवाई।
जैसे ही यह बात ओशो के अन्य भक्तों के बीच फैली तो कई और भक्त भी इसका विरोध करने पहुँच गए। उल्लेखनीय है कि ओआईएफ़ ने स्वयं माना कि वो इसे बेचने की सोच रहा था। लेकिन इसके पीछे कोरोना के कारण ओशो कम्यून को हुए नुकसान की भरपाई करना था। उनका कहना था कि कोरोना के कारण ओशो कम्यून को काफी नुकसान हुआ। इसके अलावा सीमाएं बंद होने के कारण विदेशी अनुयायी नहीं आ सके, जिससे नुकसान और बहुत बढ़ गया और वित्तीय वर्ष 2020-21 में यह 3.37 करोड़ तक पहुँच गया। इसी वजह से उन्होंने प्रॉपर्टी बेचने की बात सोची। वकील वैभव मेठा के अनुसार, “ओआईएफ एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट है। यदि कोई सार्वजनिक ट्रस्ट कोई जमीन बेचना चाहता है, तो चैरिटी आयुक्त कार्यालय की अनुमति लेना अनिवार्य है। परंतु भक्तों के अनुसार इस ‘गुप्त सौदे’ के ‘एमओयू’ होने के बाद केवल औपचारिकता निभाने की मंशा से ही अनुमति माँगी गई। परंतु ओशो के भक्तों को इसकी भनक लग गई। देखते ही देखते दुनिया भर के हज़ारों भक्तों ने ईमेल के द्वारा चैरिटी कमिश्नर को अपनी आपत्ति जताई।
इस मामले की सुनवाई 2021 में ही ज्वाइंट चैरिटी कमिश्नर के समक्ष शुरू हुई। आपत्तिकर्ताओं ने ओआईएफ ट्रस्टियों, जिन्होंने दो भूखंड बेचने की मांग की थी, उनसे जिरह की मांग की। संयुक्त चैरिटी आयुक्त कार्यालय ने याचिका को बरकरार रखते हुए जिरह की माँग को जायज़ ठहराया। इस पर ओआईएफ ने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, वहाँ भी जिरह की मांग को बरकरार रखा गया। इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ जाते हुए ओआईएफ सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में न केवल जिरह की अनुमति दी, बल्कि संयुक्त चैरिटी आयुक्त के कार्यालय को अपनी जाँच प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया। नतीजतन ओआईएफ को सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका को वापिस लेना पड़ा।
ओशो के भक्त योगेश ठक्कर के अनुसार “संयुक्त चैरिटी आयुक्त के कार्यालय ने मामले में लगातार सुनवाई की। इतना ही नहीं एक विशेष दिन पर, सुनवाई सुबह 11 बजे शुरू हुई और रात 12 बजे के बाद समाप्त हुई,।”अंततः चैरिटी कमिश्नर ने ओआईएफ के आवेदन को खारिज कर दिया, क्योंकि वे विवादित ज़मीन को बेचने के लिए “सम्मोहक आवश्यकता साबित करने में विफल रहे”। इतना ही नहीं चैरिटी कमिश्नर कार्यालय ने यह भी तर्क दिया कि ओआईएफ के पास रिसॉर्ट का प्रबंधन करने के लिए पर्याप्त धन भी मौजूद था।
आदेश के तहत ओआईएफ को न केवल 50 करोड़ की अग्रिम राशि लौटानी पड़ेगी, बल्कि आदेश की तारीख से एक महीने के भीतर, सहायक चैरिटी आयुक्त, ग्रेटर मुंबई क्षेत्र द्वारा नियुक्त किए जाने वाले विशेष लेखा परीक्षकों की एक टीम द्वारा 2005 से 2023 तक ओआईएफ के खातों का विशेष ऑडिट भी किया जाएगा।
इस फ़ैसले के बाद ओशो के साथ रहे उनके वरिष्ठ शिष्य स्वामी चैतन्य कीर्ति ने कहा कि, “यह एक ऐतिहासिक फ़ैसला है जो ओशो की विरासत को बचाने में एक मील का पत्थर सिद्ध होगा।”वे यह भी कहते हैं कि “यह एक लंबी लड़ाई की शुरुआत है जहां कुछ निहित स्वार्थ वाले विदेशी तत्व ओशो की विरासत को हथियाना चाहते हैं, जिसमें ओशो की तमाम लेखनी व अन्य चल-अचल संपत्ति भी शामिल है।जो हम कभी भी होने नहीं देंगे”
आध्यात्मिक संस्थाओं को स्थापित करने वाले गुरुओं के शिष्यों को उनके बताए सिद्धांतों का अनुपालन करना चाहिए वरना गुरुओं के वैकुण्ठ वास के बाद ऐसे विवादों का होना सामान्य है। फिर वो मामला चाहे ओशो के आश्रम की ज़मीन का हो या किसी अन्य आध्यात्मिक संस्था की संपत्ति का, ऐसे विवाद पैदा होते रहे हैं और होते रहेंगे। परंतु ऐसी हर आध्यात्मिक संस्था में जब तक आध्यात्मिक गुरुओं के सच्चे शिष्य इन ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों का विरोध करते रहेंगे तो ही ऐसे विवादों को रोका जा सकेगा। शायद इसीलिए कहा गया है कि सत्य परेशान ज़रूर हो सकता परंतु पराजित नहीं हो सकता।
ओशो आश्रम पुणे स्थित ‘बाशो तलाब’ बेचने की लड़ाई हारा ओआईएफ
पुणे में ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट एक बार फिर विवादों के घेरे में है, क्योंकि पिछले महीने उनके अनुयायियों के एक समूह ने मुंबई के संयुक्त चैरिटी कमिश्नर (जेसीसी) के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया था। जिसके बाद जेसीसी ने अपने पुराने आदेश को वापस लेते हुए ओआईएफ के आवेदन को खारिज कर दिया। जिसको ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन (ओआईएफ) ने पहले हाई कोर्ट में और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। लेकिन अब ओआईएफ ने सुप्रीम कोर्ट से भी अपनी याचिका वापस ले ली है।
ओशो आश्रम पुणे की स्थापना से जुड़े रहे स्वामी चैतन्य कीर्ति ने ‘जनादेश’ को बताया कि ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन (ओआईएफ) ने ओशो के जन्मदिन 11 दिसंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस ले ली है। बता दें कि ओआईएफ ने क्रॉस एग्जामिनेशन के संयुक्त चैरिटी कमिश्नर (जेसीसी) के आदेश के खिलाफ पहले हाईकोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। बोम्बे हाई कोर्ट से उसकी याचिका पहले ही ख़ारिज हो चुकी थी। सुप्रीम कोर्ट ने जेसीसी से इस पर रिपोर्ट मांगी थी।
स्वामी चैतन्य कीर्ति ने कहा कि संयुक्त चैरिटी कमिश्नर सुश्री मालवंकर के प्रति ओशो के लाखों शिष्य अनुगृहीत हैं कि उनके उचित आदेश के कारण आश्रम की महत्व पूर्ण ज़मीन को खंडित करने का खतरा टल गया। वे चाहते हैं कि भारत सरकार पूरे आश्रम की ज़मीन को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करे ताकि कोई स्वार्थी लोग इसे बेच न सके। स्वामी चैतन्य कीर्ति ने बताया कि इस संबंध उन्होंने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को निवेदन पत्र भेजा है। स्वामी चैतन्य कीर्ति ने बताया कि जेसीसी ने 7 दिसंबर को निर्णय दे दिया और तत्संबंधी सूचना सुप्रीम कोर्ट को दी। उन्होंने बताया कि चैरिटी कमिश्नर कोर्ट मुंबई ने बाशो तालाब को बेचने की इजाजत मांगने वाली अर्जी खारिज कर दी है। माननीय चैरिटी कमीशन का आदेश इस प्रकार है:-
ओआईएफ का 2021 का आवेदन क्रमांक 2 अस्वीकृत किया जाता है।
आवेदक ट्रस्ट को निर्देश दिया जाता है कि वे प्रस्तावक श्री राजीवनयन राहुलकुमार बजाज से प्राप्त 50 करोड़ रूपये बिना ब्याज वापस करें।
ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन (ओआईएफ) पी.टी.आर. क्रमांक एफ-14570 (मुंबई) का 2005 से 2023 तक की अवधि का एक विशेष ऑडिट होगा जो कि दो सदस्यों की ऑडिट टीम द्वारा किया जाएगा, जिसे संबंधित माननीय असिस्टेंट चैरिटी कमिश्नर ग्रेटर मुंबई क्षेत्र, द्वारा नियुक्त किया जायेगा। इसे इस आदेश की तारीख से एक महीने के भीतर करना होगा।
इस विशेष ऑडिट के लिए शुल्क रु.25,000/- प्रति वर्ष या ओआईएफ की सकल वार्षिक आय का 1%, जो भी कम होगा, महाराष्ट्र सार्वजनिक ट्रस्ट के नियम 20 के अनुसार निर्धारित किया जाएगा।
ओआईएफ के ट्रस्टियों को अनंतिम रूप से रु. 2,25,000/- पी.टी.ए. फंड में इस कार्य को को पूरा करने के लिए राशि जमा करने का निर्देश दिया जाता है, जो कि इस आदेश की तारीख से 15 दिनों के भीतर करना होगा।
ट्रस्टी, प्रबंधक और/या एकाउंट्स देखने वाला कोई अन्य व्यक्ति ओआईएफ के खातों, रिकॉर्ड और लेखा पुस्तकें, रसीद पुस्तकें, वाउचर, आदि उक्त अवधि के दौरान विशेष लेखा परीक्षकों को बही आदि ऑडिट टीम को उपलब्ध कराएंगे और लेखापरीक्षकों का हर तरह से सहयोग करेगा।
विशेष लेखा परीक्षक अपना समेकित रिपोर्ट इस प्राधिकरण को उनकी नियुक्ति की तारीख से छह महीने की अवधि के भीतर प्रस्तुत करेंगे।
ओआईसी पर काबिज विदेशी ताकतें बेचना चाहती थी ओशो तालाब
बीते दिनों पुणे का ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसॉर्ट एक बार फिर सुर्खियों में रहा। यहां पर ओशो के ही कुछ अनुयायियों और पूर्व ट्र्स्टी ने मिलकर 3 एकड़ जमीन बेचने की पहल की। यहां तक कि बोलियां भी लगने लगीं। इस पर ओशो के भक्त आहत हो गए। उन्होंने पुणे के कोरेगांव पार्क में बने इस रिसॉर्ट को बेचने वालों को घेरे में लेते हुए आरोप लगा दिया कि ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन (ओआईएफ) विदेशी ताकतों के हाथ में है और स्विटजरलैंड ही उसे संचालित कर रहा है।
ट्रस्ट ने बेचने के पीछे क्या तर्क दिया
मार्च में ओशो के प्रेम का मंदिर बाशो के बारे में कहा गया कि ओआईएफ उसे बेचने को तैयार है। खुद ओआईएफ ने माना कि वो इसे बेचने की सोच रहा था, लेकिन इसके पीछे कोरोना के कारण ओशो कम्यून को हुए नुकसान की भरपाई करना था। उनका कहना था कि कोरोना के कारण ओशो कम्यून को काफी नुकसान हुआ। इसके अलावा सीमाएं बंद होने के कारण विदेशी अनुयायी नहीं आ सके, जिससे नुकसान और बढ़ा। इसी वजह से उन्होंने प्रॉपर्टी बेचने की बात की। इसी बात पर बवाल खड़ा हो गया है।
15 लोगों पर कैसे हुआ इतना खर्च
मसला ये था कि आश्रम के मेंटनेंस और वहां रहने वाले केवल 15 लोगों का खर्च चलाने में इतना बड़ा नुकसान कैसे हुआ? जिसकी भरपाई के लिए जमीन बेचने तक की नौबत आ गई। वो भी तब देशभर में लॉकडाउन था और कोई भारी आयोजन तक नहीं हुआ।
विदेशी असर का आरोप
जिस प्रॉपर्टी को बेचने के बात हो रही थी, वो पुणे के बेहद पॉश इलाके में लगभग 9,836 वर्ग मीटर में फैली हुई है। इसपर 107 करोड़ की डील भी हो गई। ये सारा काम गुप्त तरीके से हुआ, तब जाकर बाकी अनुयायियों को इसकी भनक लगी। उन्होंने आरोप लगाया कि ये सब विदेशों में बैठे ताकतवर लोग कर रहे हैं, जो ओशो की विरासत को खत्म करना चाहते हैं ताकि उनको फायदा हो सके।
ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन का ओशो के रिसॉर्ट से क्या संबंध है?
पुणे स्थित रिसॉर्ट का संचालन ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन करता है, जो स्विटजरलैंड का ट्रस्ट है। इस फाउंडेशन पर विदेशियों का ही कब्जा रहा है। ये सब ओशो की मौत के बाद हुआ। उन्होंने ही अपनी वसीयत में ओशो की संपत्ति और प्रकाशन के सारे अधिकार ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन को ट्रांसफर करने की बात कही थी।
रहस्यमयी मौत के बाद रहस्यमयी वसीयत मिली
मौत के 23 साल पर एकाएक ये वसीयत सामने आई, जिसके कारण अब भी ओशो के मानने वाले किसी साजिश का संदेह करते हैं। जो भी हो, फिलहाल फाउंडेशन में टॉप पदों पर स्विटजरलैंड और अमेरिका के ताकतवर लोग हैं।
कितनी संपत्ति है फाउंडेशन के पास
ये फाउंडेशन रिसॉर्ट को देखता है। जो लगभग 10 एकड़ में फैला हुआ है। इसके अलावा उसके पास ओशो की बौद्धिक संपदा से भी काफी पैसे आते हैं। बता दें कि ओशो की बौद्धिक संपदा में उनकी किताबें, प्रवचन के वीडियो शामिल हैं। इनकी कीमत अरबों रुपयों की होगी। इसके अलावा हर साल दुनियाभर से बड़ी संख्या में विदेशी अनुयायी आश्रम आते और बड़े दान करते हैं। इसका पूरा आंकड़ा अब तक नहीं मिल सका है कि सालाना उन्हें कितना फायदा होता है।
हजारों ऑडियो-वीडियो और किताबें हैं
अकेले बौद्धिक विरासत की बात करें तो ओशो के हिंदी और अंग्रेजी में दिए गए प्रवचन लगभग 9 हजार घंटों के हैं। ये ऑडियो और वीडियो दोनों ही रूप में है। 600 से ज्यादा किताबें हैं, जो दुनिया की 60 से ज्यादा भाषाओं में ट्रांसलेट हो चुकी हैं। ओशो को पेंटिंग का भी शौक था। उनकी बनाई 800 पेंटिग्स भी हैं। इनके अलावा ओशो की निजी लाइब्रेरी में भी 70 हजार से ज्यादा किताबें हैं। ये सब मिलाकर अरबों रुपए की संपत्ति हैं।
ओशो सपोर्टरों का एक वर्ग मानता है कि ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन ने संपत्ति के लिए जाली वसीयत बनाई। वसीयत में अपने असल नाम चंद्रमोहन जैन के नाम से कथित तौर पर ओशो ने लिखा कि वे अपनी संपत्ति समेत प्रकाशक के हक भी फाउंडेशन को देते हैं। चूंकि फाउंडेशन विदेशी है तो इससे मिली संपत्ति पर भी विदेशियों का अधिकार हो गया। इसे ही बाद में ओशो के कई अनुयायियों ने कोर्ट में चुनौती दी थी। इसपर कोई न कोई विवाद होता ही रहा।